ODISHA TRAIN ACCIDENT : क्‍या होता है इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम

Coromandel Express Accident : ओडिशा के बालासोर में 2 जून को हुए भीषण ट्रेन हादसे ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. इस दुर्घटना में 288 लोगों की जान चली गई, जबकि करीब एक हजार लोग घायल हो गए हैं. रेल मंत्री अश्‍वनी वैष्‍णव का कहना है कि यह दुर्घटना इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली (Electronic Interlocking System) में बदलाव की वजह से हुआ. इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग को हादसे की वजह बताए जाने के बाद से ही हर कोई यह जानने को उत्‍सुक है कि आखिर रेलवे सिग्‍नल की यह अहम प्रणाली है क्‍या? यह कैसे काम करती है?

इंटरलॉकिंग सिस्टम सिग्नल देने में उपयोग होने वाली महत्वपूर्ण प्रणाली है. यह ट्रेन की सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक सिस्टम है. यह वो प्रणाली है जिसके जरिए रेलवे स्टेशनों, जंक्शनों और सिग्नलिंग प्‍वांट्स पर ट्रेनों की सुरक्षित आवाजाही के लिए जरूरी सारे काम नियंत्रित किए जाते हैं. इंटरलॉकिंग सिस्टम का उद्देश्य यह है कि किसी भी ट्रेन को तब तक आगे बढ़ने का सिग्नल नहीं मिलता जब तक वह लाइन क्लियर न हो. स्टेशन से ट्रेन के गुजरते समय अगर लूप लाइन सेट है, तो लोको पायलट को मेन लाइन का सिग्नल नहीं दिया जाएगा. इसी तरह अगर मेन लाइन सेट है तो लूप लाइन का सिग्नल नहीं मिलेगा. इस तरह ट्रेनों का निर्बाध संचालन होता है.

इस प्रणाली का कंट्रोल स्टेशन पर बैठे कर्मचारी के पास होता है. (Image : @RailMinIndia/twitter)

अहम प्रणाली 

रेलवे में दो प्रकार के इंटरलॉकिंग सिस्टम होता है. एक तो मैकेनिकल इंटरलॉकिंग या इलेक्ट्रिकल इंटरलॉकिंग और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक या कंप्यूटर इंटरलॉकिंग इलेक्ट्रोनिक इंटरलॉकिंग मॉर्डर्न सिग्नलिंग प्रणाली है. यह सॉफ्टेवेयर बेस्ड होता है. इसमें बदलाव आसानी से किए जा सकते हैं. फेल होने की स्थिति में भी इसमें कम से कम सिस्टम डाउन टाइम होता है. यह एक सिक्योरिटी सिस्टम है, जो ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सिग्नल और स्विच के बीच ऑपरेटिंग सिस्टम को कंट्रोल करता है. यह इंजीनियरिंग सिस्टम है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटर नेटवर्क के इस्तेमाल से ट्रेनों के बीच ट्रांजिशन को कंट्रोल किया जाता है.

पश्चिम बंगाल के बंडेल जंक्‍शन पर इलेक्ट्रिोनिक इंटरलॉकिंग का कंट्रोल रूम. (Image : @RailMinIndia/twitter)

कैसे काम करता है यह सिस्‍टम

रेलवे स्टेशन के पास यार्डों में कई लाइनें होती हैं. इन लाइनों को आपस में जोड़ने के लिए स्टेशन से कुछ दूर प्‍वाइंट बनाए होते हैं. इन प्‍वांट्स को जोड़ने के लिए मोटर का इस्‍तेमाल होता है. इन बिंदुओं और सिग्नल के बीच एक लॉकिंग होती है. यह लॉकिंग इस तरह होती है कि प्‍वाइंट सेट होने के बाद जिस लाइन का रूट सेट किया हो उसी का ग्रीन सिग्नल आए. इसे इसे ही इंटरलॉकिंग कहते हैं. इसका कंट्रोल स्टेशन पर बैठे कर्मचारी के पास होता है. यह कर्मचारी आने वाली ट्रेन के लोको पायलट को सिग्नल देता है कि वह रेलवे स्टेशन के कौनसे यार्ड में प्रवेश करे. इंटरलॉकिंग ही ट्रेन की सुरक्षा सुनिश्चित करती है.

2023-06-05T13:00:09Z dg43tfdfdgfd