'आपने हमारे लिए अपने दिमाग में अलग ही कहानी बना के रखी है। बेचारा, बहुत बुरा हुआ इसके साथ। कुछ बुरा नहीं हुआ हमारे साथ, बेचारे तो हम बिलकुल भी नहीं हैं। आप हमारे चक्कर में मत पड़ना, आपको बेच कर खा जाएंगे हम।' तुषार हीरानंदानी निर्देशित और राजकुमार राव अभिनीत श्रीकांत के ये संवाद फिल्म का मिजाज बयान करने के लिए काफी हैं। ये सच है कि नेत्रहीनों को समाज एक तरफ दयनीय तो दूसरी तरफ हेय दृष्टि से भी देखता है। लोगों को लगता है कि ये दिव्यांग सिर्फ भीख ही मांग सकते हैं, मगर जब आपकी जीती-जागती दुनिया में श्रीकांत बोला जैसा एक ऐसा शख्स आता है, जो विजुअली इंपेयर्ड होने के बावजूद तमाम विडंबनाओं से गुजरकर न केवल 150 करोड़ की कंपनी शुरू कर नेत्रहीनों के लिए रोजगार मुहैया करवाता है, बल्कि भारत का पहला दृष्टि बाधित राष्ट्रपति बनने का सपना भी रखता है, ऐसा किरदार स्वाभाविक रूप से एक स्ट्रॉन्ग बायोपिक में तब्दील हो जाता है। तुषार ने अपने निर्देशन में राजकुमार राव को 'श्रीकांत' बनाकर ऐसी फीलगुड बायोपिक फिल्म दी कि दर्शक जब सिनेमा हॉल से बाहर निकलते हैं, तो नेत्रहीनों के प्रति अपना नजरिया बदला हुआ पाते हैं।
इस सफर में श्रीकांत को संवारती-निखारती हैं उसकी टीचर, जिसका किरदार ज्योतिका ने निभाया है। आगे की कहानी अमेरिका से हैदराबाद आकर अपने देश के दिव्यांगों के लिए रोजगार मुहैया करवाने वाली कंपनी की शुरुआत और संघर्षों के बीच गुजरती है, जहां बिजनेस में एक तरफ पार्टनर बनकर रवि (शरद केलकर) श्रीकांत का साथ देता है, तो दूसरी तरफ स्वाति (अलाया एफ) न केवल उसे अपना प्यार देती है, बल्कि उसके भटकने पर उसे नैतिकता का पाठ भी पढ़ाती है।
फर्स्ट हाफ संघर्षों के बावजूद चुटीला है, जबकि सेकंड हाफ में कहानी थोड़ी खिंची हुई लगती है। मगर लेखक सुमित पुरोहित और जगदीप सिद्धू समेत तुषार ने पूरा फोकस श्रीकांत की बुद्धिमत्ता पर रखा है कि कैसे वो अपने इंटेलिजेंस से विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाता जाता है। फिल्म शिक्षा प्रणाली पर कटाक्ष भी करती है। तुषार अंधेपन पर सिर पीटने के बजाय उसका जश्न मनाते हैं और सेलिब्रेशन में दर्शक भी शामिल होता है।
संगीत की बात करें तो, 'पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा' को सिचुएशन के हिसाब से बहुत खूबसूरत ढंग से रीक्रिएट किया गया है। मगर तनिष्क बागची और सचेत-परंपरा के संगीत में, 'तू मिल गया' और ' तुम्हें ही अपना मानना है' जैसे गाने ठीक-ठाक बन पड़े हैं।
अभिनय की बात करें, तो श्रीकांत के रूप में राजकुमार राव फिल्म का सबसे अच्छा हिस्सा हैं। किसी बायोपिक में उसकी कास्टिंग सबसे ज्यादा अहम होती है। वाकई राजकुमार राव के अलावा श्रीकांत के किरदार में किसी और की कल्पना की ही नहीं जा सकती। राजकुमार राव तमाम दृश्यों में चमकते हैं, उस वक्त भी जब वे अंहकार से भरे नजर आते हैं।
टीचर के रूप में ज्योतिका का अभिनय शानदार है। वे सहज और संवेदनशील ढंग से किरदार को पेश करती हैं। स्वाति के किरदार को अलाया एफ बेहद खूबसूरत ढंग से निभा ले जाती हैं। हालांकि उन्हें स्क्रीन स्पेस कम मिला है, मगर उन्होंने अपना दम दिखाया है। श्रीकांत के दोस्त, पार्टनर, शुभचिंतक रवि के चरित्र में शरद केलकर एक एक्टर के रूप में अपना हिस्सा जोड़कर उसे और मजबूत बनाते हैं। सपोर्टिंग कास्ट विषय के अनुरूप है।
क्यों देखें- फीलगुड वाली प्रेरणादायक बायोपिक फिल्मों के शौकीन और राजकुमार राव के उत्कृष्ट अभिनय के लिए यह फिल्म देखें।
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