(Shani jayanti vrat katha) हिंदू धर्म में सभी तिथि के बारे में विस्तार से बताया है। वहीं हर साल वैशाख माह में शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शनिदेव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है। यह जातक को उनके कर्मों के आधार पर ही फल प्रदान करते हैं। वहीं साल 2024 शनि का साल भी माना जा रहा है। जिसमें कुछ राशि के जातकों पर शनि की साढ़ेसाती का भी प्रकोप है। अब ऐसे में अगर आप शनि जयंती के दिन व्रत रखते हैं, तो बिना कथा के पूर्ण नहीं मानी जाती है। इसलिए कथा सुनना और पढ़ना बेहद जरूरी है। अब ऐसे में अगर आप संध्या के समय शनिदेव की पूजा कर रहे हैं, तो इनकी व्रत क्या है और पूजा का महत्व क्या है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
न्यायप्रिय और पराक्रमी राजा विक्रमादित्य शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए हर शनिवार व्रत रखते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शनिदेव ने उन्हें नौ ग्रहों का स्वामी बना दिया। एक बार राजा विक्रमादित्य ने अपने मित्र भट्ट" की पत्नी सुंदरी को अपमानित कर दिया। क्रोधित होकर सुंदरी ने राजा विक्रमादित्य को श्राप दिया और कहा कि राजा विक्रमादित्य को अपनी शक्तियों का ह्रास और राज्य से वंचित होना पड़ेगा। शनिदेव ने सुंदरी के श्राप को स्वीकार करते हुए राजा विक्रमादित्य को एक वर्ष का समय दिया। विक्रमादित्य ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर परिश्रम शुरू कर दिया। समय बीतने के साथ, राजा विक्रमादित्य ने अपनी शक्तियों और राज्य को खो दिया। उन्हें भिक्षा मांगकर जीवनयापन करना पड़ा। निराश न होते हुए, विक्रमादित्य ने शनिदेव का व्रत अधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ जारी रखा। धीरे-धीरे शनिदेव प्रसन्न हुए और विक्रमादित्य को उनकी शक्तियां और राज्य वापस लौटा दिया। यह कथा सिखाती है कि कर्मों का फल अवश्य मिलता है। न्यायपूर्ण और दयालु बनना चाहिए। कठिन परिस्थितियों में भी हमें धैर्य और आस्था नहीं खोनी चाहिए।
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शनिदेव को न्याय, कर्म और भाग्य का देवता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस भी जातक की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव है। उसे शनिदेव की पूजा करने से लाभ हो सकता है। शनिदेव की पूजा करने से जातकों को आरोग्य की प्राप्ति हो सकती है और सुख-समृद्धि के साथ सफलता की भी प्राप्ति होती है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए काले वस्त्र अवश्य पहनें। शनिदेव को तेल, सिंदूर, फूल और काले तिल अर्पित करने चाहिए। इसके अलावा शनि स्तोत्र का पाठ करने से भी लाभ हो सकता है।
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Image Credit- Herzindagi
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