मौलिक मुद्दे हों तो मुखर होंगे मौन मतदाता

आज मतदाता और नेता का संवाद ही खत्म हो गया है। जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधि से प्रश्न नहीं पूछ पाती है। नेता चुनाव के समय दिखते हैं और फिर पांच साल बाद ही नजर आते हैं। राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र और जमीनी हकीकत के बीच कोई मेल नहीं है। ऐसे में मतदान में अरुचि बढ़ना स्वाभाविक हैं। मौलिक मुद्दों पर बात हो आज भी मतदाता मुखर होंगे। मतदान प्रतिशत बढ़ेगा। लोकतंत्र धवल होगा और जनता की भागीदारी बढ़ेगी। लोकतंत्र में आधी आबादी के मुद्दे समझकर अगर पार्टियां सही प्रत्याशी को टिकट बांटेंगी तो जनता का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा।

एक समय था जब नेता जनता की सुनते थे और जनता की मांग पर राजनीतिक दलों द्वारा प्रत्याशी घोषित होते थे। घोषणा पत्र को अमली जामा पहनाने में जीत-हार मायने नहीं रखता था। हमारा नेता ऐसा हो जो समाज में समानता और समरसता लाए न कि विभाजित करे।

ये बातें उभरकर सामने आई आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान के चर्चित अभियान आओ राजनीति करें के तहत आयोजित संवाद शृंखला अनौखी चौपाल में। बुधवार को हिन्दुस्तान कार्यालय, बुद्ध मार्ग में आयोजित संवाद कार्यक्रम में विभिन्न पेशे से जुड़ी अनोखियों ने बेबाकी से अपनी बातें रखीं। महिलाओं ने कहा कि आज जनता और नेता को एक प्लेटफॉर्म पर लाने वाली एजेंसियों को कमजोर किया जा रहा है। आज अच्छे प्रत्याशियों का अकाल नहीं है। अधिकतर मतदाता धरातल का नेता चाहते हैं। हवाई किले वाले नेता ज्यादा हैं। उदासीनता इस वजह से बढ़ी है। वोटर समझने लगे हैं कि जब उनकी बात ही नहीं सुनी जाती है तो वे चुनें तो किसको। महिलाओं ने संवाद में मजबूती से कहा कि राजनीति का व्यावसायीकरण न हो। चुनाव प्रचार में धन-बल वाले प्रत्याशियों की जितनी अधिकता बढ़ेगी, सहज और स्वच्छ छवि के प्रत्याशी चुनावी प्रक्रिया से दूर होते जाएंगे। चुनाव इतना महंगा न हो कि आम लोग चुनाव ही नहीं लड़ें। महिला वोटरों ने कहा कि आजकल अच्छी छवि के प्रत्याशियों को लेकर समाज में हास्यास्पद परिदृश्य गढ़ा जा रहा है। धन-बल नेता होने की अनिवार्यता नहीं है। ऐसे लोगों को टिकट देकर राजनीतिक दल खुद कमजोर होंगे। नतीजतन लोकतंत्र भी कमजोर होगा।

महिला सुरक्षा और उद्यमिता है मुद्दा

महिलाओं ने कहा कि उनका मुख्य मुद्दा सुरक्षा और उद्यमिता है। वे उद्योगों की स्थापना चाहती हैं। जात-पात या किसी तरह का भेदभाव वे नहीं चाहती हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे इस चुनाव में भी उनका प्रमुख मुद्दा है। महिलाओं ने कहा कि पहले चुनाव में जीत-हार का अंतर लाखों वोटों का होता था। इससे नेता की लोकप्रियता का पता चलता था। अब तो मामूली मतों के अंतर से प्रत्याशी जीत रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण लोक का चुनाव से दूर होना है। इसमें नेताओं और राजनीतिक दलों को पहल करने की जरूरत है।

अब भी मतदान से वंचित होते हैं वोटर

महिलाओं ने कहा कि निर्वाचन आयोग को एक बार यह भी देखना चाहिए। कई मतदाताओं का वोटर लिस्ट में नाम ही नहीं होता। पूरे परिवार का नाम वोटर लिस्ट से गायब हो जा रहा है। पहले मतदान से पूर्व पर्चियां बांटने का चलन था। सभी दलों के लोग ऐसा करते थे। इससे मतदाता मतदान को प्रेरित होते थे। अब तो यह चलन ही खत्म हो गया।

2024-05-09T12:00:24Z dg43tfdfdgfd