पार्टी के रुख पर सवाल

ऐन चुनावों के बीच जिस तरह के संगीन आरोप लगे और विवाद खड़ा हुआ, उसके बाद हासन लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद, इन चुनावों में प्रत्याशी और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ की गई JDS की कार्रवाई स्वाभाविक ही कही जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि अगर अभी कर्नाटक में वोटिंग बाकी न होती और विपक्षी कांग्रेस के साथ ही सहयोगी BJP का भी दबाव न होता, तब भी क्या पार्टी नेतृत्व का यही रवैया होता?

देरी क्यों: मंशा पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि इस मामले की सुगबुगाहट पिछले साल जून से थी। तब प्रज्वल रेवन्ना ने अदालत का रुख किया था। उन्होंने कोर्ट से मांग की थी कि उनसे जुड़े कुछ फेक विडियो हैं, जिन्हें पब्लिश करने से मीडिया संस्थानों को रोका जाए। कर्नाटक में BJP का JDS के साथ गठबंधन है। हासन के एक स्थानीय BJP नेता ने आम चुनाव से पहले अपनी पार्टी को इस मामले की जानकारी देते हुए आगाह किया था कि प्रज्वल और उसके पिता एचडी रेवन्ना को टिकट नहीं मिलना चाहिए।

छवि की चिंता: विडियो सामने आने के बाद JDS के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी की प्रतिक्रिया भी निराश करने वाली रही। उन्हें इस मामले में बड़ी बात यही दिखी कि विडियो हासन में वोटिंग के पहले क्यों रिलीज किए गए। साथ ही, उनकी चिंता थी कि केस से देवेगौड़ा का नाम न जोड़ा जाए। आरोपी प्रज्वल ने जब विडियो पब्लिश होने से रोकने के लिए अदालत का रुख किया तो उनकी भी चिंता अपनी इमेज को लेकर थी। इन सबके बीच पीड़ित महिलाओं का दर्द कहीं खो जाता है। क्या उनकी इमेज के कोई मायने नहीं?

अफसोस की बात: सबसे दुखद पहलू यह है कि इस पूरे प्रकरण का घटनाक्रम चौंकाता नहीं है। यह आम बात लगने लगी है - ताकतवर नेता, मजबूर महिलाएं और कमजोरों की अनदेखी करने वाला सिस्टम। हाल के कितने सारे मामले ध्यान में आ जाते हैं। कुछ ही समय पहले ऐसे ही आरोपों के साथ देश के जाने-माने और ओलिपिंक मेडल विनर पहलवान सड़क पर उतरे थे। उन्हें भी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा था।

नजीर बने: इस तरह की घटनाओं का बार-बार होना बताता है कि कुछ ताकतवर लोग खुद को नियम-कानून से ऊपर समझते हैं और तंत्र अपने लुंज-पुज व्यवहार से उनकी इस समझ को मजबूती देता है। दिक्कत सामाजिक परिवेश में भी है, जहां एक महिला के लिए अपनी लड़ाई लड़ना मुश्किल होता है। लड़ाई में साथ देना तो दूर, उसे भावनात्मक समर्थन भी नहीं मिल पाता। जरूरी है कि इस मामले की तह तक जाकर सचाई का पता लगाया जाए और दोषी के खिलाफ जल्द से जल्द उचित कार्रवाई करके इसे एक नजीर की तरह पेश किया जाए।

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2024-05-02T00:16:18Z dg43tfdfdgfd