DARBAR E KHAS INDORE: सात के फेर में पसीना-पसीना हो रहे भाजपाई

Darbar E Khas Indore:दरबार-ए-खास, डा. जितेंद्र व्यास

मध्य प्रदेश में आम चुनाव को एक पक्षीय बता रहे भाजपाई पहले चरण में हुए कम मतदान के बाद पसीना-पसीना हो रहे हैं। विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में बीते चुनाव की तुलना में करीब सात प्रतिशत तक कम मतदान ने क्षेत्र के बड़े भाजपा नेताओं के माथे पर पसीना ला दिया है। कहां तो मतदान प्रतिशत बढ़ाकर जीत के अंतर को बढ़ाने की कवायद में हफ्तों से भाजपाई जुटे थे और कहां मतदान प्रतिशत बढ़ने के बजाय कम हो गया। प्रदेश में सबसे ज्यादा चिंता में इस समय मालवा-निमाड़ के नेता हैं। दरअसल, यहां की आठ लोकसभा सीटों के लिए चौथे चरण में 13 मई को मतदान होना है। उस समय गर्मी तो चरम पर होगी ही, मतदान तिथि के आसपास अक्षय तृतीया जैसे मंगल विवाह मुहूर्त भी हैं। ऐन चुनाव के वक्त इस स्थिति से पार कैसे पाया जाए, यही बात इस समय नेताओं के बीच चर्चा के केंद्र में है। सात प्रतिशत के इस गड्ढे ने भाजपाइयों को परेशानी में डाल दिया है।

500 करोड़ के पानी पर ‘पानी’ फेर रहे जिम्मेदार

इंदौर प्रदेश का ऐसा शहर है जो महंगा पानी पीता है। 70 किमी की दूरी से ऊंचे पहाड़ पार कर जो नर्मदा जल इंदौर को मिलता है, वह जिम्मेदारों की लापरवाही से रोजाना सड़कों पर बहता है। कभी पाइप लाइन फूटने की वजह से तो कभी लीकेज की वजह से। गर्मी शुरू होते ही शहर के कई इलाकों में टैंकरों से जलप्रदाय की व्यवस्था की जाती है। इन टैंकरों को भरने के दौरान भी लाखों लीटर पानी इसलिए व्यर्थ बह जाता है क्योंकि हाइड्रेंट से टैंकर भरने के दौरान कभी ओवरफ्लो होकर तो कभी सिस्टम बंद करना भूल जाने की वजह से पानी सड़कों पर बहता रहता है। पानी की बर्बादी रोकने की जिम्मेदारी जोन के उन अधिकारियों की भी है, जिनके अंतर्गत संबधित हाइड्रेंट आते हैं, लेकिन किसी का ध्यान नहीं। यह स्थिति तब है जब पानी लाने पर ही निगम सालाना करीब 500 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है।

समय पर नहीं जागे तो इस बार भी डूबेगा शहर

वर्षा के मौसम में इंदौर का मौसम भले ही खुशनुमा हो जाता है, लेकिन सड़कें पोखर से कम नजर नहीं आतीं। घंटे भर की बारिश में जो जलजमाव होता है, उससे छोटे चार पहिया वाहन तो दूर, बड़े वाहन भी थम जाते हैं। बीते वर्ष एमआर-10 पर टूरिस्टों की एक मिनी बस तालाब बनी सड़क पर फंस गई थी। यात्रियों को किसी तरह बाहर निकालने के बाद वर्षा जल को सड़क के एक हिस्से से दूसरे हिस्से की ओर निकालने के लिए बाक्स कलवर्ट बनाने की शुरुआत हुई। साल बीतने को है, लेकिन इसका काम अब भी अधूरा है। डेढ़ माह में मानसून इंदौर में दस्तक दे देगा और सड़कें इस बार फिर तालाब बनी नजर आएंगी। कारण फिर वही उदासीन रवैया। जिस एजेंसी को काम सौंपा गया था, उसने इसलिए काम बंद कर दिया क्योंकि निगम ने भुगतान समय पर नहीं किया। अब इस लापरवाही का खामियाजा शहर को भुगतना होगा।

वाकई कारगर होंगे प्रयास या फिर ठंडी होगी ये ‘आग’?

इंदौर के प्रमुख क्षेत्रों की इमारतों में एक के बाद एक आग लगने की कई दुर्घटनाओं से एक बार फिर यह सवाल सामने है आया कि इनसे बचाव के लिए बनाए गए नियमों का आखिर पालन क्यों नहीं होता। हर दुर्घटना के बाद जिम्मेदार जांच कमेटी बनाकर रिपोर्ट तैयार करते हैं और तंत्र के सुराखों का लाभ उठाकर दोषी आराम से बच निकलते हैं। किंतु इस बार प्रशासन की कार्रवाई कुछ आगे बढ़ती नजर आई है। पहली बार शहर की इमारतों का सर्वे कर उन्हें चिह्नित करने की कार्रवाई पूरी कर ली गई है। करीब 26 हजार इमारतों के कर्ताधर्ताओं को एक माह का समय देकर कह दिया गया है कि व्यवस्थाएं जुटा लें अन्यथा इमारत सील होगी। प्रयास तो उम्दा हैं, लेकिन ये कारगर हों, तब कहीं बात बने। अन्यथा बीते वर्षों की तरह यह कदम भी इमारत की आग की तरह ‘ठंडा’हो जाएगा।

2024-04-24T08:23:17Z dg43tfdfdgfd