UNKNOWN FACTS ABOUT RATH YATRA: रथयात्रा से जुड़े ये 10 रोचक रहस्‍य, आप जानते हैं कब और कैसे शुरू हुई यह रथ यात्रा

उड़ीसा में हर साल भगवान जगन्‍नाथ की रथयात्रा निकलती है। इस रथ यात्रा भगवान जगन्‍नाथ यानी कि भगवान कृष्‍ण के साथ उनके भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा का भी रथ रहता है। ये तीनों रथ नगर भ्रमण करते हुए अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। मान्‍यता है कि एक बार बहन सुभद्रा ने अपने दोनों भाइयों से नगर घूमने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की थी, तभी से इस रथ यात्रा का आयोजन हो रहा है। आइए जानते हैं रथ यात्रा के बारे में खास और रोचक बातें।

उड़ीसा के प्रसिद्ध तीर्थस्‍थान पुरी में हर साल भगवान जगन्‍नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। इस साल रथ यात्रा का आयोजन 7 जुलाई से होगा। पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ मास के शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया को इस विश्‍व प्रसिद्ध रथयात्रा का आयोजन होता है। भगवान जगन्‍नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण करते हुए अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्‍थान करेंगे। चलिए आपको बताते हैं रथयात्रा से जुड़ी कुछ खास और रोचक बातें।मूर्ति में नहीं हैं किसी के हाथ-पैर और पंजे

सुनने में यह बात अजीब जरूर लगती है, लेकिन यह सच है कि भगवान जगन्‍नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम जी तीनों की मूर्तियों में किसी के हाथ, पैर और पंजे नहीं होते हैं। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा यह है कि प्राचीन काल में इन मूर्तियों को बनाने का काम विश्‍वकर्मा जी कर रहे थे। उनकी यह शर्त थी कि जब तक मूर्तियों को बनाने का काम पूरा नहीं हो जाएगा, तब तक उनके कक्ष में कोई भी प्रवेश नहीं करेगा। लेकिन राजा ने उनके कक्ष का दरवाजा खोल दिया तो विश्‍वकर्माजी ने मूर्तियों को बनाना बीच में ही छोड़ दिया। तब से मूर्तियां अधूरी रह गईं जो कि आज तक पूरी नहीं हो पाई हैं। तब से इन तीनों मूर्तियों के हाथ पैर और पंजे नहीं होते। मूर्तियों को नीम की लकड़ी से बनाया जाता है।

ऐसे होते हैं रथ

भगवान जगन्‍नाथ की यात्रा के रथ भी बेहद खास होते हैं। इन्‍हें नीम के पेड़ की लड़की से बनाया जाता है। रथ यात्रा की तैयारी हर साल बसंतपंचमी से शुरू हो जाती है। खास बात यह होती है कि इसको बनाने में किसी भी प्रकार की धातु का कतई प्रयोग नहीं होता है। रथ की लकड़ी प्राप्‍त करने के लिए स्‍वस्‍थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है।

ऐसा होता है जगन्‍नाथजी का रथ

जगन्‍नाथ जी का रथ 16 पहियों का बना होता है और इसमें लकड़ी के 332 टुकड़ों का प्रयोग किया जाता है और इसकी ऊंचाई 45 फीट होती है। भगवान जगन्‍नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है। रथ का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया के दिन से आरंभ हो जाता है। उनका रथ बाकी दो रथों से आकार में बड़ा होता है। इनके रथ पर हनुमानजी और नृसिंह भगवान का प्रतीक अंकित रहता है और यह रथ यात्रा में सबसे पीछे रहता है।

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बलरामजी के रथ की खास बात

बलरामजी भगवान जगन्‍नाथजी के बड़े भाई हैं और बड़े होने के नाते यह सबका नेतृत्‍व करते हैं। इसलिए यात्रा में इनका रथ सबसे आगे रहता है। इनके रथ की ऊंचाई 44 फुट होती है। इस रथ में नीले रंग का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है।

बहन सुभद्रा का रथ

कृष्‍ण और बलराम की लाडली बहन सुभद्रा का रथ दोनों भाइयों के सुरक्षा घेरे में रहता है। यानी सुभद्रा का रथ दोनों रथों के बीच में चलता है। इसकी ऊंचाई 43 फीट होती है और इसको सजाने में मुख्‍य रूप से काले रंग का प्रयोग किया जाता है।

मूर्तियों में भी अस्थियां

पुराणों में बताया गया है कि इन मूर्तियों का निर्माण राजा नरेश इंद्रद्युम्‍न ने करवाया था। वह भगवान विष्‍णु के परम भक्‍त थे। मान्‍यता है कि राजा के सपने में आकर भगवान ने उन्‍हें मूर्तियों को बनाने का आदेश दिया था। सपने में उन्‍हें बताया गया है कि श्रीकृष्‍ण नदी में समा गए हैं और उनके विलाप में बलराम और सुभद्रा भी नदी में समा गए हैं। उनके शवों की अस्थियां नदी में पड़ी हुई हैं। भगवान के आदेश को मानकर राजा ने तीनों की अस्थियां नदी से बटोरीं और मूर्तियों के निर्माण के वक्‍त प्रत्‍येक मूर्ति में थोड़ा-थोड़ा अंश रख दिया। जगन्‍नाथजी के मंदिर का निर्माण करीब 1000 साल पहले हुआ था और तब से हर 14 साल में यहां प्रतिमाएं बदल दी जाती हैं।

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रथ खींचने से मिलता है यह पुण्‍य

थयात्रा के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो भी भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचता है उसे फिर जन्म नहीं लेना पड़ता है यानी उसे इसी जन्म में मुक्ति मिल जाती है। इसलिए रथ को खींचने के लिए लोगों में गजब का उत्साह रहता है।

यहां हवा की दिशा तक बदल जाती है

भगवान जगन्नाथ को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में हुआ था, जिसे चार धामों में भी स्थान प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर की चोटी पर लहराता ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। दरअसल ऐसा कहा जाता है कि यहां दिन के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम में इसके उलट दिशा में हवा बहती है। मगर मंदिर का ध्वज इसके ठीक विपरीत उल्टे दिशा में लहराता है, क्योंकि मंदिर में हवा दिन में समुद्र की ओर और रात में मंदिर की तरफ बहती है।

हर दिन बदला जाता है ध्‍वज

भारत में किसी मंदिर का ध्वज हर दिन नहीं बदला जाता है। जगन्नाथजी का मंदिर ही एक मात्र मंदिर है जिसका ध्वज हर दिन बदला जाता है। हर दिन एक पुजारी को ऊंचे गुंबद पर चढ़कर ध्वज बदलना होता है। जगन्नाथ मंदिर की ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी ध्वज नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा।

ऐसी भी है मान्‍यता

रहस्‍यों से भरे इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर के ऊपर कभी भी कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं दिखता। यहां तक कि कोई विमान भी इसके ऊपर से होकर नहीं गुजर सकता। माना जाता है कि यहां एक विशेष प्रकार की चुम्‍बकीय शक्ति के कारण ऐसा होता है।

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