HOSHANGABAD LOK SABHA GROUND REPORT: 38 वनग्रामों के आदिवासियों तक नहीं पहुंची योजनाएं

Hoshangabad Lok Sabha Ground Report: प्रवीण मालवीय, नईदुनिया, भोपाल। कई पीढ़ियों से हमारी रक्षा करते आ रहे बड़ा देव को जंगल से बाहर ले आए। परिवार के साथ नई जगह गांव बसा लिया लेकिन सरकार इन्हें राजस्व गांव मानने को तैयार नहीं है। आज भी कागजों पर यह वनग्राम ही हैं और हमारे खेत भी वनभूमि में ही है। यहां से एक किमी दूर के गांव के किसानों की फसल खरीदी केंद्रों में बिकती है लेकिन हम कम कीमतों में व्यापारियों को बेचने को मजबूर होते हैं।

यह दर्द है बाबई तहसील के बागड़ा तवा गांव से सात किलोमीटर दूर स्थित नया चूरणा गांव के भारती उइके का। इसी तरह का दर्द सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से विस्थापित किए गए 38 गांवों के हजारों आदिवासियों का है। उन्हें जंगल से बाहर आने के 10 साल बाद भी राजस्व गांव का नहीं होने से सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार चरम पर है लेकिन विस्थापित आदिवासियों की समस्याओं का मुद्दा किसी राजनीतिक दल के एजेंडे में है। कोई राजनेता भी इन्हें हल करने का विश्वास दिला रहा है।

होशंगाबाद। नए चूरना के पास अपने खेत में पेड़ के नीचे महुआ बीनती महिला राधा, वह इससे गुड़ बनाएगी।

प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं

नया मालिनी गांव के निवासी मंगलवार सुबह हनुमान जन्मोत्सव की तैयारी में जुटे थे। सिंदूर के फल से बीज निकालने में जुटे धनसिंह उइके बोले यह नए मालिनी में उनका सातवां साल है। हम तो यहां आ गए थे लेकिन बाबा की मूर्ति पुराने मालिनी में ही थी, अब मंदिर बन गया है, आज बाबा (मूर्ति) की स्थापना यहां कर रहे हैं। इस बीच एक प्रचार वाहन सड़क से गुजरता है।

इतने सालों में क्या मिला, इसके जवाब में रघुवीर बोले कि वन विभाग ने वादे पूरे किए हैं, जमीन समतल करके दी गई है, बोर करके दिया है। गांव में सड़क- बिजली है लेकिन उपज कहां बेचें। खरीदी केंद्र में नाम ही नहीं है। सुंदर लाल बताते हैं कि प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला। बुजुर्ग कामता प्रसाद बताते हैं, महिला वाला लाभ भी नहीं मिलता। सरपंच बताते हैं कि कुछ महिलाएं छूट गई हैं। यहां के अधिकांश लोगों के कागज ही पूरे नहीं है इस कारण समस्या आती है।

सम्मान निधि न मिलने का दर्द

14 अप्रैल को पिपरिया आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि नर्मदापुरम के किसानों को सम्मान निधि के 400 करोड़ मिले हैं। आने वाले पांच सालों में दो हजार करोड़ रुपये मिलेंगे। लेकिन यह सम्मान निधि विस्थापित गांवों के किसानों को नहीं मिल पा रही है क्योंकि यह जमीन वन विभाग ने दी है जो राजस्व रिकार्ड में दर्ज ही नहीं है।

वन उपज छूटी, तिनका-तिनका जोड़ रहे

राजू उइके बताते हैं कि जंगल में हम महुआ, चिंरौजी और तेंदूपत्ता बीन लेते थे। आंवला, आम से लेकर कई फल मिल जाते थे यहां आंगन तो है कुछ ने दशहरी आम भी लगा लिए है लेकिन देशी आम, नीम तैयार होने में समय लगेगा। तिनका-तिनका जोड़ रहे हैं। बस सरकार से मदद मिल जाए तो राहत मिले।

एक दर्जन गांवों का टोला, तैयार हो रहे घर

नया चूरणा के नजदीक सीधी रेखा में बसे नया मालिनी, नया साकोट, नया कांकड़ी, नया धांई सहि नया बतकछार, नया घोड़ानाल, नया रोरी घाट, नया माना, नया सुकलई और नया मल्लूपुरा, नया परसापानी जैसे करीब एक दर्जन गांव इस क्षेत्र में बसाए गए हैं। जबकि शेष 25 से अधिक गांवों को अन्य स्थानों पर बसाया गया है। साफ-सुथरे गांवों में हर घर के सामने बड़ा सा आंगन नजर आता है।

नर्मदापुरम के रहने वाले घनश्याम मालवीय बढ़ई (कारपेंटर) हैं। घनश्याम बताते हैं कि यहां नए गांव बस रहे हैं काम मिलेगा, यह सोचकर देखने आया था फिर एक के बाद एक काम मिलते गए और तीन सालों से यहीं रह रहा हूं। आदिवासी अपने साथ सागौन की बल्लियां लाए हैं जिन्हें घर में लगा रहे हैं। फर्नीचर भी बनवा रहे हैं।

पानी आ जाए तो बढ़े उपज

जंगल के बीच से निकलकर आए ग्रामीणों की सबसे बड़ी मांग विस्थापन के बदले मिली जमीन को राजस्व में शामिल करने की है। दूसरी बड़ी मांग सिंचाई के पानी की है। तवा नहर की ब्रांच यहां आ जाए तो खेत सूखे न रहें और फसल की उपज भी बढ़ जाए जिससे विस्थापन में मिली पांच-पांच एकड़ जमीन की छोटी जोत पर दाना-पानी उगाने का संघर्ष कर रहे किसानों के चेहरे की तस्वीर बदल सके।

2024-04-23T22:36:46Z dg43tfdfdgfd